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अक्तूबर 06, 2013

पंडित रामाशीष पाठक के विनम्र श्रद्धांजलि


प्रसिद्ध पखावज वादक पंडित रामाशीष पाठक आब हमरा लोकनिक विच नहि रहला, हूनकर  निधन भ गेलइन। अमता घरनाक पंडित रामाशीष पाठक के विनम्र श्रद्धांजलि..अप्पन पखावज वादन लेल ओ प्रसिद्ध आ संगीत नाटक अकादेमी सहित कतेको पुरस्कार सं अलंकृत भेल छलाह..पंडित जी के निधन शास्त्रीय संगीत जगत लेल एकटा अपूर्णीय क्षति अछि...विनम्र श्रद्धांजलि ... 

फ़रवरी 08, 2013

मनुक्ख बनब कोना?


मनुक्ख बनब कोना?

छीः छीः धूर छीः आ छीः
मनुक्ख भ मनुक्ख सँ घृणा करैत छी
ओही परमेश्वर के बनाउल
माटिक मूरत हमहूँ छी अहूँ छी।

केकरो देह मे भिरला सँ
कियो छुबा ने जाइत अछि
आबो संकीर्ण सोच बदलू
ई गप अहाँ बुझहब कोना?

अहिं कहू के ब्राह्मण के सोल्हकन?
के मैथिल के सभ अमैथिल
सभ त मिथिलाक मैथिल छी
आबो सोच बदलू मनुक्ख बनब कोना?

अपना स्वार्थ दुआरे अहाँ
जाति-पाति के फेरी लगबैत छी
मुदा ई गप कहिया बुझहब
सभ त माँ मिथिले के संतान छी।

पाग दोपटा मोर-मुकुट
सभटा त एक्के रंग रूप छी
मिथिलाक लोक मैथिल संस्कार
एसकर केकरो बपौती नहि छी।

एकटा गप अहाँ करु धियान
सभ गोटे मिथिलाक संतान
जाति-पातिक रोग दूर भगाउ
सभ मिली कए लियअ गारा मिलान।

अपने मे झगरा-झांटी बखरा-बांटी
एहि सँ किछु भेटल नहि ने?
सोचब के फर्क अछि नहि कोनो जादू टोना
अहिं कहू आब मनुक्ख बनब कोना?

बेमतलब के गप पर यौ मैथिल
अहाँ एक दोसरा स’ झगरा करैत छी
माए जानकी दुखित भए कानि रहल छथि
ई गप किएक नहि अहाँ बुझहैत छी?

सामाजिक-आर्थिक विकास लेल काज करु
मिथिलाक माटि-पानि उन्नति करत कोना
केकरो स’ कोनो भेदभाव नहि करु
सप्पत खाउ अहाँ मनुक्ख बनब कोना?

जनवरी 12, 2013

डिनर डिप्लोमेसी (हास्य कविता)

डिनर डिप्लोमेसी

(हास्य कविता)



डिनर टेबल पर परोसल अछि

मटर पनीर आ शाही पनीर

छौंकल अछि घी देसी

आउ-आउ ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



हम सतारूढ़ दल वला छी

आई सहयोगी दल वला लेल

डिनर माने भोज आयोजित भेल

हमरा समर्थन भेटल खूम बेसी।



आब बाहर सँ समर्थन देनिहार

बाकि रहि गेल छथि त

आई हुनके नामे राजनीतिक डिनर

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



अहाँ सभ जे खाएब

हम अहाँक फरमाईस पुराएब

मुदा एकटा गप कहि दि हम

बाहरि समर्थन के कहाबद्धि कराएब।



भरि पेट खाई जाई जाउ

अहाँ जे खाएब से हम खुआएब

मुदा ई कहू त चुपेचाप रहब

आ की मध्यावधि चुनाव करबाएब।



धू जी महराज अहूँ त

एकदम ताले करैत छी

खाइत-पीबैत काल ई गप नहि

पहिने दारू मँगाउ अहाँ बिदेशी।



डिनर टेबुल के नीचा मे देखू

बोतल राखल अछि देसी-बिदेशी

भरि छाक पीब लियअ

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



अच्छा ई कहू त सरकार

एतेक खर्चा अपना जेबी

आ कि सरकारी खजाना सँ

हमरा ध लेलक बेहोशी।



होश मे आउ गठबंधन बचाउ

हम सत्ता मे छी की कहू

अपनो खर्चा सरकारी भेल बड्ड बेसी

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।।



कवि:- किशन कारीगर

आकाशवाणी दिल्ली।