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अप्रैल 14, 2011

किछु त हम करब


किछु त हम करब
अवस्था भेल हमर आब बेसी टूघैर टूघैर हम चलब
अहाँ आगू आगू हम पाछू पाछू मुदा अपना माटि पानि लेल किछु त हम करब नुनु  बौआ अहाँ  आऊ
बुचि दाय अहूँ आऊ दुनू गोटे मिली जल्दी सँ
मैथिली में किछु खिस्सा सुनाऊ
नान्ही टा में बजलौहं एखनो बाजू मातृभाषा में बाजू अहाँ निधोख कनि अहाँ बाजू कनेक हम बाजब नहि बाजब त कोना बुझहत लोक परदेश जायत मातर किछु लोग बिसैर जायत छित मातृभाषा कें
अहिं बिसैर जायब त आजुक नेना कोना बुझहत
कहें मीठगर स्वाद होयत अछि मातृभाषा कें अप्पन माटि पानि अप्पन भाषा संस्कृति
पूर्वज के दए गेल एकटा अनमोल धरोहर एही धरोहर के हम बंचा के राखब
अपना माटी पानि लेल किछु त हम करब कोना होयत अप्पन माटिक आर्थिक विकास सभ मिली एकटा बैसार करू कनेक सोचू सभहक अछि एकटा इ दायित्व किछु बिचार हम कहब किछु त अहूँ कहू हमरा अहाँक किछु कर्तब्य बनैत अछि एही परम कर्तब्य सँ मुहँ नहि मोडू स्नेह रखू हृदय में सभ के गला लगाऊ
अपना माटी पानि सँ लोक के जोडू समाजक लोक अपने में फुट्बैल करैत छथि
मनसुख देशी त धनसुख परदेशी एक्के समाज में रहि ऐना जुनि करू एकजुट हेबाक प्रयास आओर बेसी करू एक भए एक दोसरक दुःख दर्द बुझहब
अनको लेल किएक ने कतेको दुःख सहब
आई एकटा एहने समाजक निर्माण करब जीबैत जिनगी किछु त हम करब हाम्रो अछि एकटा सेहनता एक ठाम बैसी
सभ लोक अपन भाषा में बाजब औरदा अछि आब कम मुदा जीबैत जिनगी अपना माटी पानि लेल किछु त हम करब
लेखक - किशन कारीगर

अप्रैल 03, 2011

कक्का हमर उचक्का ।

    कक्का हमर उचक्का
                     होली पर हास्य कविता


ओंघराइत पोंघराइत हरबड़ाइत धड़फराइत धांई दिस
बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का
होरी मे बरजोरी देखी मुस्की मारैत
काकी मारलखिन दू-चारि मुक्का।।

धिया-पूता हरियर पीयर रंग सॅं भिजौलकनि
बड़की काकी हॅसी घिची देलखिन धोतीक ढे़का
पिचकारी मे रंग भरने दौगलाह हमर कक्का
अछैर पिछैर के बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का।।

होरी खेलबाक नएका बसंती उमंग
ततेक गोटे रंग लगौलकनि मुॅंह भेलैन बदरंग
काकी के देखैत मातर कक्का बजलाह
आई होरी खेलाएब हम अहींक संग।।

कक्का के देखैत मातर काकी निछोहे परेलीह बजलीह
होरी ने खेलाएब हम कोनो अनठीयाक संग
जल्दी बाजू के छी अहॉं नहि मुॅंह छछारि देब
घोरने छी आई हम करिक्का रंग।।

भाउजी हम छी अहॉक दुलरूआ दिअर
होरी खेला भेल छी हम लाल पिअर
आई भैयओ नहि किछू बजताह जल्दी होरी खेलाउ
एहेन मजा फेर भेटत नेक्सट ईअर।।

सुहर्दे मुॅंहे मानि जाउ यै भाउजी
नहि करब हम कनि बरजोरी
होरी मे अहॉ जबान बुझाइत छी
लगैत छी सोलह सालक छाउंड़ी।।

आस्ते बाजू अहॉक भैया सुनि लेताह
कहता किशन भए गेल केहेन उचक्का
केम्हरो सॅ हरबड़ाएल धड़फराएल औताह
छिनी फेक देताह हमर पिनी हुक्का।।

आई ने मानब हम यै भाउजी
फुॅसियाहिक नहि करू एक्को टा बहन्ना
आई दिउर के भाउजी लगैत अछि कुमारि छांउड़ी
रंग अबीर लगा भिजा देब हम अहॉक नएका चोली।।

ठीक छै रंग लगाउ होरी मे करू बरजोरी
आई बुरहबो लगैत छथि दुलरूआ दिअर
सुनि पुतहू के भाउजी बुझि होरी खेलाई लेल
बान्हे पर दौगल अएलाह कक्का हमर उचक्का।।

लेखक:- किशन कारीगर ।

               
                                   
परिचय:- जन्म- 19830(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार रायकिशन। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय नन्दू माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।

                 




भिन भिनौज।

भिन भिनौज।

आई अपने भैयारी मे कए रहल छी कटवा-कटौज
रहल छी अपने भैयारी मे भिन भिनौज
बाबू जी अनैत छलाह किछू नीक निकौत
दुनू भाई करैत छलहूॅ खूम घोंघाउज।।

एक्के थारी में बैसी के खाइत छलहूॅ
मुदा एहेन बॅटवारा नहि देखल
नहि हमरा देखैत अछि हम नहि ओकरा
कनेक नासमझीपन आब भिन भिनौज सेहो करेलक।।

बाबू जी केर मोन दुखित भेलैन केकरो आब आस नहि
कहैत छै हम नहि देखबैए भैयाक पार छै
हम कहैत छियैक हम किया देखबैए छोटका के पार छै
मरै बेर मे आब बुरहबा के एक लोटा पानि देनिहार कियो ने।।

छोटकी पुतहू झॉउ झॉउ रहल अछि
सैझलियो कोनो दसा बॉकी नहि रखने अछि
कटवा कटौज आई अपने मे भए रहल अछि
एहेन भिन भिनौज देखि बुरहबा शोक संतापे मरि रहल अछि।।

झर झर बहि रहल अछि बुरहबाक ऑखि सॅ नोर
एसकरे कुहैर रहल छथि मुदा केकरा करताह सोर
सब किछू एक रंगे बॉटि देलाक बादो
पुतहू मुॅह चमकबैत अछि बेटा खिसियाअैत अछि भोरे भोर।।

हमरा सुखचेन सॅ मरअ दियअ ने
सभ सॅ बुरहबा नेहोरा कए रहल छथि
मुदा जल्दी मरि जाउ घरक गारजीयन बुरहबा
सभ मिली हुनका गंगा लाभ करा रहल छथि।।

गंगा लाभ करैते मातर थरा थरा के मरि गेलाह
ओही दुनू कपूतक बाप अभागल बुरहबा
सुनि आई किशन बहा रहल अछि नोर
कठियारी जेबाक लेल केकरा करत सोर।।

हाई रे आधुनिक बेटा पुतहू की
जीबैत जिनगी माए बापक सत्कार नहि करैत छी
मुदा हुनका मरलाक बाद की
पॉच गाम पूरी जिलेबीक भोज किएक करैत छी।।

केकरा सॅ कहू ओई बुरहबाक दुःख तकलीफ
अपटी खेत मे चलि गेल प्राण हुनकर
एहेन नहि देखल कटवा कटौज
कारीगर करैत अछि नेहारा नहि करू एहेन भिन भिनौज।।

लेखक:- किशन कारीगर ।