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नवंबर 23, 2014

किछु फुरा गेल हमरा (काव्य संग्रह), लेखक- किशन कारीगर द्वारा लिखल पहिल पोथी, अपने सभ सुधि पाठक लोकनिक समक्ष उपलब्ध अछि. अपनेक आशिर्वचनक बाट जोहैत.....
"Kichhu Fura Gel Hamra" (Poem Collection) written by- Kishan Karigar, is now available for all of you my dear respective Reader


अगस्त 15, 2014

बीर जबान


  बीर जबान

मातृभूमीक रक्षा लेल
शहीद भऽ जाइत छथि बीर जबान
समहारने छथि ओ देशक सीमान
नमन करैत छी हम, अहॉ छी बीर जबान।

मरब की जीयब
तेकर नहि रहैत छनि हुनका धियान
मुदा, देशक रक्षा लेल ओ सदखनि
न्योछाबर करैत छथि अपन जान।

सैनिक छथि ओ इन्सान
देशक दुशमन पर रखैत छथि धियान
आतंकवादीक छक्का छोड़ा दैत छैक
परमवीर छथि, हिन्दुस्तानक बीर जबान।

महान छथि ओ बीर जबान, देशक खातिर
जे हॅंसैत-हॅंसैत देलथिहिन अपन बलिदान
भारतवासी गर्व करैत अछि अहॉ पर
नहि बिसरत कहियो अहॉक त्याग आओर बलिदान।

सीमा पार सॅं, केलक आतंकी हमला
कऽ देलियै आतंक के मटियामेट अहॉं
भऽ गेलहु अपने लहु-लुहान मुदा
आतंक सॅं बचेलहु सभहक जान

कारगील सॅ कूपवाड़ा तक
आतंकवादी सॅं लैत छी अहॉं टक्कर
अहॉंक बीरता देखी कऽ
अबैत छैक ओकरा चक्कर।

बीर जबान यौ बीर जबान
समहारने छी अहॉं देशक सीमान
कोना कऽ हेतै देशक रक्षा
सदखनि अहॉ रहैत छी हरान।
                     कवि:- किशन कारीगर
(कॉपीराइट नियम मोताबिक@ लेखक नामे सर्वाधिकार सुरक्षित).




अगस्त 09, 2014

बारूद के ढ़ेड़ी पर बैसल

बारूद के ढ़ेड़ी पर बैसल 

बारूद के ढ़ेड़ी पर बैसल हम 
अट्टहास क हंसी रहल छी 
मिसायल हमला स उड़ा देब 
हम अहाँ के नेस्तनाबूद क देब.

हमरा लक एतेक परमाणु शक्ति अछि
हम अप्पन शक्ति प्रदर्शन केलौहं 
हमरा सिमान में उड़ल जहाज के 
अपनेमन ड्रोन हमला स उड़ा देब

त्रादसि मचल, निर्दोष मारल गेल
एहि स केकरो की?
सभ अपना परमाणु प्रदर्शन में बेहाल
मानवताक विनाश करै में लागल छि.

हाहाकार मचल, लोक अधमरू भेल
कोन दिसि जाउ सगतरि विनाश
बारूदी अगिलग्गि में लोक उजड़ी गेल
मुदा तइयो हवाई हमला रोकल नहि गेल.

संघर्ष विरामक सप्पत खा के
फेर किएक? गोला बारूद बरसबै छि
अहाँ साम्राज्यवादी पसार दुआरे सगतरि
मानवताक विनाश पर, उतारू भेल छि.

पहिल आ दोसर विश्वयुद्धक भीषण
दुष्परिणाम भोगि चुकल समूचा विश्व
आबो मानवताक रक्षा लेल सचेत भ' जाउ
कहीं ई तेसर विश्वयुद्धक संकेत, नहि त छि?

कोनौहं विवादक फरिछौठ सभ देश मिली
शांति समझौता सँ कएल करू
गोला बारूद स विनाश टा होएत
किएक नहि एक बेर ई गप सोचैत छि.
कवि- किशन कारीगर
(नोट- कॉपीराइट अधिनियम@ लेखक नामे सर्वाधिकार सुरक्षित).

अप्रैल 01, 2014

संपादक स्वर्गवासी भ गेलाह


संपादक स्वर्गवासी भ गेलाह

अत्यंत प्रस्सान्तक संग सूचित क रहल छि जे आजुक शुभ दिन के शुभ मूहर्त में भिंसुरका पहर मिथिलांचल टुडे केर (सम्पादक) सोझहे सवर्गलोक पहुंच गेलाह. अतिथि संपादक अट्टहास करैत ई सूचना देलैन जे मृतक लेल एकटा मौन श्रद्धांजलि सभा केर आयोजन - (मावलंकर हॉल) दिल्ली में साँझुक पहर ५;५५ में  केएल जायत. इच्छुक व्यक्ति अपना बजट केर मोताबिक मधुर नेने अबश्य आबि.

                                                                              अपनेक स्वर्गवासी (संपादक)


अक्तूबर 06, 2013

पंडित रामाशीष पाठक के विनम्र श्रद्धांजलि


प्रसिद्ध पखावज वादक पंडित रामाशीष पाठक आब हमरा लोकनिक विच नहि रहला, हूनकर  निधन भ गेलइन। अमता घरनाक पंडित रामाशीष पाठक के विनम्र श्रद्धांजलि..अप्पन पखावज वादन लेल ओ प्रसिद्ध आ संगीत नाटक अकादेमी सहित कतेको पुरस्कार सं अलंकृत भेल छलाह..पंडित जी के निधन शास्त्रीय संगीत जगत लेल एकटा अपूर्णीय क्षति अछि...विनम्र श्रद्धांजलि ... 

फ़रवरी 08, 2013

मनुक्ख बनब कोना?


मनुक्ख बनब कोना?

छीः छीः धूर छीः आ छीः
मनुक्ख भ मनुक्ख सँ घृणा करैत छी
ओही परमेश्वर के बनाउल
माटिक मूरत हमहूँ छी अहूँ छी।

केकरो देह मे भिरला सँ
कियो छुबा ने जाइत अछि
आबो संकीर्ण सोच बदलू
ई गप अहाँ बुझहब कोना?

अहिं कहू के ब्राह्मण के सोल्हकन?
के मैथिल के सभ अमैथिल
सभ त मिथिलाक मैथिल छी
आबो सोच बदलू मनुक्ख बनब कोना?

अपना स्वार्थ दुआरे अहाँ
जाति-पाति के फेरी लगबैत छी
मुदा ई गप कहिया बुझहब
सभ त माँ मिथिले के संतान छी।

पाग दोपटा मोर-मुकुट
सभटा त एक्के रंग रूप छी
मिथिलाक लोक मैथिल संस्कार
एसकर केकरो बपौती नहि छी।

एकटा गप अहाँ करु धियान
सभ गोटे मिथिलाक संतान
जाति-पातिक रोग दूर भगाउ
सभ मिली कए लियअ गारा मिलान।

अपने मे झगरा-झांटी बखरा-बांटी
एहि सँ किछु भेटल नहि ने?
सोचब के फर्क अछि नहि कोनो जादू टोना
अहिं कहू आब मनुक्ख बनब कोना?

बेमतलब के गप पर यौ मैथिल
अहाँ एक दोसरा स’ झगरा करैत छी
माए जानकी दुखित भए कानि रहल छथि
ई गप किएक नहि अहाँ बुझहैत छी?

सामाजिक-आर्थिक विकास लेल काज करु
मिथिलाक माटि-पानि उन्नति करत कोना
केकरो स’ कोनो भेदभाव नहि करु
सप्पत खाउ अहाँ मनुक्ख बनब कोना?

जनवरी 12, 2013

डिनर डिप्लोमेसी (हास्य कविता)

डिनर डिप्लोमेसी

(हास्य कविता)



डिनर टेबल पर परोसल अछि

मटर पनीर आ शाही पनीर

छौंकल अछि घी देसी

आउ-आउ ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



हम सतारूढ़ दल वला छी

आई सहयोगी दल वला लेल

डिनर माने भोज आयोजित भेल

हमरा समर्थन भेटल खूम बेसी।



आब बाहर सँ समर्थन देनिहार

बाकि रहि गेल छथि त

आई हुनके नामे राजनीतिक डिनर

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



अहाँ सभ जे खाएब

हम अहाँक फरमाईस पुराएब

मुदा एकटा गप कहि दि हम

बाहरि समर्थन के कहाबद्धि कराएब।



भरि पेट खाई जाई जाउ

अहाँ जे खाएब से हम खुआएब

मुदा ई कहू त चुपेचाप रहब

आ की मध्यावधि चुनाव करबाएब।



धू जी महराज अहूँ त

एकदम ताले करैत छी

खाइत-पीबैत काल ई गप नहि

पहिने दारू मँगाउ अहाँ बिदेशी।



डिनर टेबुल के नीचा मे देखू

बोतल राखल अछि देसी-बिदेशी

भरि छाक पीब लियअ

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



अच्छा ई कहू त सरकार

एतेक खर्चा अपना जेबी

आ कि सरकारी खजाना सँ

हमरा ध लेलक बेहोशी।



होश मे आउ गठबंधन बचाउ

हम सत्ता मे छी की कहू

अपनो खर्चा सरकारी भेल बड्ड बेसी

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।।



कवि:- किशन कारीगर

आकाशवाणी दिल्ली।