दौगल चलि जाएब गाम।
मनुक्ख दौग रहल अछि मचल अछि आपा-धापी
जतए केकरो कियो ने चिन्ह रहल अछि
एहेन नगर आ पाथर हृद्य सॅं दूर
एखने होइए जे दौगल चलि जाएब गाम।।
लोहाक छड़ आ सीमेंट कंक्रीट सॅं बनल
ओना तऽ ई एकटा आधुनिक महानगर अछि
मुदा शहरक एहि आपा-धापी मे
मनुक्खक हृद्य जेना पाथर भऽ गेल अछि।।
किएक मचल अछि आधुनिकताक ई हरविड़ो ?
कि भेटत एहि सॅं कियो ने किछू बूझि रहल अछि
जेकरे दूखू रूपैयाक ढ़ेरी लेल अपसियॉंत रहैत अछि
पाथर हृद्य मनुक्ख मानवताक मूल्य केने अछि जीरो।।
लिफट लागल उ दसमंजिला मकान
एक्के फलैट पर रहितौ लगैत छी अनजान
ओ अड़ोसी हम पड़ोसी मुदा
एक दोसर के नहि कोनो जान-पहचान।।
कहू एहेन कंक्रीटक शहर कोन काजक
आधुनिकताक काल कोठरी अछि साजल
एहि चमचमाईत कोठरी मे कियो ने केकरो चिन्ह रहल अछि
रूपैयाक खातिर आबक मनुक्ख की कि ने कऽ रहल अछि।।
अतियौत-पितियौत ममियौत-पिसियौत जेकरा देखू
अपने मे मगन चिन्हा परिचे सॅं कोन काज
आधुनिकताक काल कोठरी मे आब
अनचिन्हार भऽ गेलाह जन्मदाता बूढ़ माए-बाप।।
शहरक एहेन अमानवीय आपा-धापी देखि केॅं
पसीज गेल हमर हृद्य
एहेन अनचिन्हार नगर छोड़ि केॅं मोन होइए
एखने आब दौगल चलि जाएब गाम।।
हे यौ भलमानुस आधुनिक मनुक्ख
एहेन अनचिन्हार नगर ने नीक
एहि कंक्रीटक महल सॅ एक बेर तऽ देखू
गामक कोनो टूटली मरैया बड्ड नीक।।
मनुक्ख एक दोसर के चिन्ह रहल अछि
चिड़ै चुनमून चॅू चॅू कए रहल अछि
रस्ता-पेरा निश्छल प्रेमक धार बहि रहल अछि
हरियर-हरियर खेत-पथार आई सोर कऽ रहल अछि।।
टूटलाहा टाट खर-पतारक किछू घर
जतए नहि कियो अनचिन्हार नहि कोनो डर
चौवटिया लग फरैत अछि खूम आम
एहने नगर के औ बाबू लोग कहैत छैक गाम।।
लेखक:- किशन कारीग़र
http://kishankarigar.blogspot.com
मनुक्ख दौग रहल अछि मचल अछि आपा-धापी
जतए केकरो कियो ने चिन्ह रहल अछि
एहेन नगर आ पाथर हृद्य सॅं दूर
एखने होइए जे दौगल चलि जाएब गाम।।
लोहाक छड़ आ सीमेंट कंक्रीट सॅं बनल
ओना तऽ ई एकटा आधुनिक महानगर अछि
मुदा शहरक एहि आपा-धापी मे
मनुक्खक हृद्य जेना पाथर भऽ गेल अछि।।
किएक मचल अछि आधुनिकताक ई हरविड़ो ?
कि भेटत एहि सॅं कियो ने किछू बूझि रहल अछि
जेकरे दूखू रूपैयाक ढ़ेरी लेल अपसियॉंत रहैत अछि
पाथर हृद्य मनुक्ख मानवताक मूल्य केने अछि जीरो।।
लिफट लागल उ दसमंजिला मकान
एक्के फलैट पर रहितौ लगैत छी अनजान
ओ अड़ोसी हम पड़ोसी मुदा
एक दोसर के नहि कोनो जान-पहचान।।
कहू एहेन कंक्रीटक शहर कोन काजक
आधुनिकताक काल कोठरी अछि साजल
एहि चमचमाईत कोठरी मे कियो ने केकरो चिन्ह रहल अछि
रूपैयाक खातिर आबक मनुक्ख की कि ने कऽ रहल अछि।।
अतियौत-पितियौत ममियौत-पिसियौत जेकरा देखू
अपने मे मगन चिन्हा परिचे सॅं कोन काज
आधुनिकताक काल कोठरी मे आब
अनचिन्हार भऽ गेलाह जन्मदाता बूढ़ माए-बाप।।
शहरक एहेन अमानवीय आपा-धापी देखि केॅं
पसीज गेल हमर हृद्य
एहेन अनचिन्हार नगर छोड़ि केॅं मोन होइए
एखने आब दौगल चलि जाएब गाम।।
हे यौ भलमानुस आधुनिक मनुक्ख
एहेन अनचिन्हार नगर ने नीक
एहि कंक्रीटक महल सॅ एक बेर तऽ देखू
गामक कोनो टूटली मरैया बड्ड नीक।।
मनुक्ख एक दोसर के चिन्ह रहल अछि
चिड़ै चुनमून चॅू चॅू कए रहल अछि
रस्ता-पेरा निश्छल प्रेमक धार बहि रहल अछि
हरियर-हरियर खेत-पथार आई सोर कऽ रहल अछि।।
टूटलाहा टाट खर-पतारक किछू घर
जतए नहि कियो अनचिन्हार नहि कोनो डर
चौवटिया लग फरैत अछि खूम आम
एहने नगर के औ बाबू लोग कहैत छैक गाम।।
लेखक:- किशन कारीग़र
http://kishankarigar.blogspot.com